लक्ष्मी जी पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 05 बजकर 40 मिनट से शाम 07 बजकर 36 मिनट तक।
यह अवधि : 01 घंटा 54 मिनट तक रहेगी
प्रदोष काल- 05:29 से 08:07 तक
वृषभ काल- 05:40 से 07 :36 तक
दिवाली पर्व का सबसे ज्यादा महत्व शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी पूजन का होता है। दिवाली की रात परिवार के सभी सदस्य नए कपड़े पहन कर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा में शामिल होते । ऐसा माना जाता है कि दिवाली के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि वैभव सदैव बना रहता है और कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
लक्ष्मी पूजा हिन्दू धर्म दिवाली जोकि रोशनी का त्योहार माना जाता है , भारत में सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। हालाँकि इसके कई रीति-रिवाज और अनुष्ठान हैं, दिवाली के मुख्य पहलुओं में से एक देवी लक्ष्मी की पूजा है, जो धन, समृद्धि और सौभाग्य की हिंदू देवी है। दिवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा का बहुत महत्व है और ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से इस परंपरा का पूरी निष्ठा से पालन किया जाता है। इस त्यौहार पर लोग विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। वे धन के लिए देवी लक्ष्मी, बुद्धि के लिए भगवान गणेश, ज्ञान के लिए देवी सरस्वती, शक्ति के लिए देवी काली और समृद्धि के लिए भगवान कुबेर से प्रार्थना करते हैं। लोगों का मानना है कि इन सभी देवी-देवताओं की एक साथ पूजा करने से वे सुखी और सफल जीवन पा सकते हैं।
दिवाली लक्ष्मी-गणेश पूजन ( Lakshmi-Ganesh Diwali ) दिवाली के दिन मुख्य रूप से माता लक्ष्मी और भगवान गणपति की पूजा की जाती है। ऐसा मन जाता है कि दिवाली की रात मां लक्ष्मा पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि आशीर्वाद देती हैं। माता लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है और उनकी पूजा करने से धन तथा वैभव मिलता है। वहीं भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय माना जाता है। दिवाली के दिन गणेश जी के पूजन से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है और बुद्धि के देवता होने के नाते अपने भक्तों को सद्बुद्धि का वरदान भी देते हैं।
दिवाली पर देवी लक्ष्मी का स्वागत (Wolcom Godess Laxmi on Diwali) दिवाली रावण पर विजय के बाद भगवान राम की अयोध्या वापसी का प्रतीक है, और ऐसा माना जाता है कि अयोध्या के लोगों ने अंधेरे को दूर करने के लिए दीपक और रोशनी के साथ उनका स्वागत किया था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनके घर रोशन हों और राम की वापसी के लिए आमंत्रित हों और उनका आशीर्वाद पाने के लिए, उन्होंने देवी लक्ष्मी की पूजा की, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है। इसलिए, दिवाली का लक्ष्मी की पूजा से गहरा संबंध बन गया।
दिवाली परंपराओं का सम्मान (Respecting Diwali traditions) परंपराएं और रीति-रिवाज दिवाली समारोह का एक अभिन्न अंग हैं, और लक्ष्मी पूजा सबसे स्थायी में से एक है। परिवार प्रार्थना करने, दीपक जलाने और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हैं, जिससे एकजुटता और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है। देवी लक्ष्मी की पूजा करने का कार्य सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों को भी मजबूत करता है।
दिवाली प्रकाश और पवित्रता का प्रतीक (Diwali Symbol of light and purity) दिवाली अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दिवाली के दौरान दीपक जलाना न केवल आशा और सकारात्मकता का प्रतीक है, बल्कि आंतरिक प्रकाश का भी प्रतिनिधित्व करता है जो अज्ञानता और अंधकार को दूर करता है। लक्ष्मी पूजा करके, लोग परमात्मा के प्रति अपनी भक्ति और सदाचार और पवित्रता का जीवन जीने की अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
दिवाली पर आभार व्यक्त करना (Expressing gratitude on Diwali ) लक्ष्मी पूजा लोगों के लिए उन्हें प्राप्त धन और समृद्धि के लिए आभार व्यक्त करने का भी एक अवसर है। यह अपने संसाधनों का बुद्धिमानी से उपयोग करने, जरूरतमंद लोगों के साथ साझा करने और सुरक्षित और समृद्ध भविष्य के लिए देवी का आशीर्वाद लेने की याद दिलाता है।
Conclusion : निष्कर्ष :
दिवाली के दौरान लक्ष्मी पूजा की प्रथा केवल एक परंपरा नहीं है बल्कि एक गहन आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक कार्य है। यह धन की आकांक्षा, प्रचुरता का उत्सव, प्रकाश और पवित्रता का महत्व और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति को दर्शाता है। यह परिवारों को एक साथ लाता है और देवी लक्ष्मी का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि आने वाले वर्ष में समृद्धि और खुशहाली बनी रहे।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: शाम 05 बजकर 40 मिनट से शाम 07 बजकर 36 मिनट तक।
अवधि: 01 घंटा 54 मिनट
प्रदोष काल- 05:29 से 08:07 तक
वृषभ काल- 05:40 से 07 :36 तक
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