नसीरुद्दीन शाह- अब हिंदी फिल्मों में दम नहीं बचा मैंने हिंदी फिल्मे देखना बंद कर दिया।

maine hindi filme dekhna band kar diya hai


७१ वर्षीय जाने माने बॉलीवुड कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने भारतीय फिल्मों और फिल्म  मेकर्स के बारे में अपनी नाराजगी जताते हुए एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि " अब हिंदी फिल्मों में दम नहीं बचा मैंने हिंदी फिल्मे देखना बंद कर दिया " वे इस बात से काफी निराश हैं कि हिंदी फिल्म मेकर्स कैसी फिल्मे बना रहे हैं। उन्होंने कहा उन्हें यह कहते हुए गर्व होता है कि बॉलीवुड की फिल्मों का गौरवशाली इतिहास १०० साल पुराना है। लेकिन अब उन्हें हिंदी फिल्में देखने में मजा नहीं आता और उन्होंने हिंदी फिल्मे देखना बंद कर दिया। उनका मानना ​​है कि हिंदी फिल्म निर्माता ऐसी फिल्में बना रहे हैं जो एक-दूसरे से काफी मिलती-जुलती हैं या एक जैसी हैं।


साऊथ की फिल्मे हिंदी की फिल्मों की तुलना में बेदाग़ होती हैं।  साथ ही साथ उन्होंने एक और विवादित टिप्पड़ीं करते हुए कहा की हिंदी फिल्मों में सभी धर्मों का मजाक उड़ाया जाता है। 

नसीरुद्दीन शाह ने कहा " अब हिंदी फिल्मों में दम नहीं बचा "। 

Nasiruddin Shah a Fairbrand Actor
(Photo by Arvind Yadav/Hindustan Times via Getty Images

ये कहना है शाह का - अपने इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा की " हिंदी फिल्मे दुनिया भर में इसलिए देखीं जाती हैं क्योंकि भारत के लोग आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं लेकिन जिस तरह से एक ही तरह की फिल्मे बनाई जा रही हैं बहुत जल्दी ही लोग फिल्मों से ऊब जायेंगे।

 
नसीर ने हिंदी फिल्मों की तुलना हिंदुस्तानी खाने से करते हुए कहा की लोग हिंदुस्तानी खाना पसंद करते हैं क्योंकि यह अच्छा होता है और इसमें दम होता है। लेकिन भारतीय फिल्मों के बारे में उनका मानना ​​है कि हिंदी फिल्में अपना जोस और उत्साह  खोती जा रही हैं और " अब हिंदी फिल्मों में दम नहीं बचा " क्योंकि वे कुछ नया लेकर नहीं आ रही हैं। 

गदर 2, द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों की लोकप्रियता वास्तव में हानिकारक, परेशान करने वाली है...

नसीरुद्दीन शाह बॉलीवुड फिल्मे द कश्मीर फाइल्स, द केरल स्टोरी और गदर 2 की 'भारी' लोकप्रियता को देखते हुए काफी परेशान है। 


फ्री प्रेस जर्नल के साथ अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि फिल्म निर्माता बहुत कुछ ऐसा कर रहे हैं जो 'बहुत हानिकारक' है। शाह के बयान में कहा गया है, की  "केरल स्टोरी और गदर 2 फिल्मों की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें लगता है की इस तरह की फिल्मे समाज के लिए हानिकारक है।

आज की फिल्मों में अपने समय की सच्चाई को चित्रित करने की कोशिश करने वाले मेहता नज़र नहीं आते। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि सुधीर मिश्राअनुभव सिन्हा और हंसल जैसे फिल्म निर्माता हिम्मत न हारें और कहानियां सुनाते रहें।

भारतीय फिल्म निर्माताओं को दी नशीहत :

नसीरुद्दीन शाह ने भारतीय फिल्म निर्माताओं को नशीहत देते हुए कहा की - जब तक इंडियन फिल्म मेकर्स फिल्मों को पैसा कमाने का साधन मानना बंद नहीं करते तब तक इसमें कोई सुधार नहीं होगा। भारतीय फिल्म निर्माताओं की जिम्मेदारी है की वे अपनी फिल्मों में असलियत दिखाएँ लेकिन इस काम को उन्हें इस तरह से करना चाहिए की कोई उनके खिलाफ फतवा न जारी करे और उनके दरवाजे पर ईडी दस्तक न दे। 

दरअसल ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब नसीरुद्दीन शाह ने विवादित बयान बाज़ी की है समय समय पर उन्होंने फ़िल्मी एक्टरों पर भी काफी असम्मानजनक टिप्पड़ियां की हैं -  

जब नसीरुद्दीन शाह ने राजेश खन्ना को कहा घटिया एक्टर


नसीरुद्दीन शाह ने 2016 में दिवंगत अभिनेता राजेश खन्ना के बारे में विवादित टिप्पणी करते हुए उन्हें एक खराब अभिनेता बताया था। उनकी टिप्पणियों को प्रशंसकों और सहकर्मियों से महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया मिली, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में दिवंगत अभिनेता के योगदान का बचाव किया और शाह के दृष्टिकोण पर सवाल उठाया।

एक ही तरह की फिल्मों ने दर्शकों का स्वाद बिगाड़ दिया है...

आईएएनएस से बात करते हुए नसीरुद्दीन शाह ने कहा, ''हमारे मुख्यधारा सिनेमा ने दर्शकों का स्वाद हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया है. फिल्म निर्माता सत्यजीत रे ने 50 साल पहले लिखी अपनी किताब " हमारी फिल्में, उनकी फिल्में " में इस बात का जिक्र किया है। वह भारतीय फिल्मों की आलोचना नहीं कर रहे थे, बल्कि वह केवल भारतीय फिल्म निर्माताओं की तुलना अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माताओं से कर रहे थे।

हमारे सिनेमा को 100 साल से अधिक समय हो गया है, और हमारा मुख्यधारा सिनेमा एक ही तरह की फिल्में बनाता रहता है, कई कहानियाँ जो आपको मुख्यधारा की फिल्मों में मिलती हैं, वे 'महाभारत' जैसे भारतीय महाकाव्यों में पाई जा सकती हैं, जो लिखे गए सबसे महान महाकाव्यों में से एक है। भारत में आप जो भी मुख्यधारा की फिल्म देखते हैं, उसका कुछ न कुछ संदर्भ या तो महाभारत' से या शेक्सपियर से लिया जाता है। 

हिंदी मुख्यधारा के सिनेमा का हर घिसा-पिटा रूप शेक्सपियर से काफी हद तक उधार लिया गया है।''

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